यूपी बोर्ड के शिक्षक असमंजस में किस किताब से पढ़ाएं, यह अब तक तय नहीं
लखनऊ। यूपी बोर्ड का सत्र शुरू हुए 45 दिन गुजर गए हैं। अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण कर प्रधानाचार्यों और शिक्षकों को बच्चों की संख्या बढ़ाने और नियमित पढ़ाने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन किताबों का पता नहीं है।
परिषद ने शैक्षिक कलेण्डर जारी कर दिया, लेकिन अभी तक एनसीईआरटी की किताबों का टेंडर नहीं कराया है। जिसकी वजह से किताबें बाजार में नहीं उपलब्ध हैं। प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के सामने बड़ी असमंजस की स्थिति है कि वह बच्चों को कौन सी किताबें खरीदने का सुझाव दें? फिलहाल पुरानी किताबों से पढ़ा रहे हैं। यह समस्या लखनऊ समेत समूचे प्रदेश के यूपी बोर्ड के स्कूलों में हैं।
पिछले प्रकाशक की किताबें बाजार में नहीं राजकीय व एडेड स्कूलों के प्रधानाचार्यों का कहना है कि किताबें बाजार में नहीं मिल रही हैं। अकेले में लखनऊ के राजकीय, एडेड व वित्तविहीन स्कूलों में करीब दो लाख पंजीकृत हैं। बच्चों के पास किताबें नहीं हैं। बैग खाली लेकर आ रहे हैं। पुरानी किताबों से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। एक प्रधानाचार्या ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा परिषद ने जुलाई में तीन प्रकाशकों के नाम तय किये थे। लेकिन किताबें मुहैया नहीं करा पाए।
हर साल किताबें बच्चों को देर से मिलती हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। सरकार को चाहिए कि सत्र शुरू होने से पहले ही किताबें उपलब्ध करानी चाहिए। ताकि बच्चे किताबें खरीदकर पढ़ाई शुरू सकें। डॉ. आरपी मिश्रा, उप्र. माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रादेशिक उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता
माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो गई। अभी तक माध्यमिक शिक्षा परिषद की ओर से किताबों को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं मिले हैं। जैसे ही कोई आदेश मिलेगा। उसका पालन कराया जाएगा। ताकि कोई परेशान न हो।
राकेश कुमार पाण्डेय, डीआईओएस
विक्रेता बोले किताबों में कोई कमीशन ही नहीं था
लखनऊ के अमीनाबाद स्थित नवयुग बुक एजेंसी, शीतला बुक डिपो, पुस्तक वाटिका, ओम डिपो और व्यापार सदन यूपी बोर्ड की किताबों के थोक विक्रेता हैं। इनके मालिकों का कहना है बीते साल यूपी बोर्ड द्वारा जिन प्रकाशकों की एनसीईआरटी की किताबें नामित की गई थी उनमें भौतिक, रसायन और बायो की किताबों की कीमतें इतनी कम थी कि थोक व फुटकर कमीशन में कोई कमीशन नहीं था। इसलिए विक्रेता परेशान थे।
source http://www.primarykamaster.in/2023/05/blog-post_61.html
Comments
Post a Comment