तीन साल से छोटे बच्चे को प्री-स्कूल जाने को मजबूर करना गैरकानूनी, छह वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा लागू करने के फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज की सभी याचिकाएं
तीन साल से छोटे बच्चे को प्री-स्कूल जाने को मजबूर करना गैरकानूनी, छह वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा लागू करने के फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज की सभी याचिकाएं
गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले महीने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष से कक्षा एक में एडमिशन के लिए छह वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा लागू करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं खारिज कर दीं।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने ऐसा करते हुए आगे कहा कि 3 साल से कम उम्र के बच्चों को प्री-स्कूल जाने के लिए मजबूर करना माता-पिता की ओर से 'गैर-कानूनी कार्य' है।
31 जनवरी, 2020 और 4 अगस्त, 2020 की विवादित अधिसूचनाएं पहली कक्षा में बच्चे के एडमिशन के लिए शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के 1 जून को 6 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित करती हैं।
याचिकाकर्ता-माता-पिता ने तर्क दिया कि 6 वर्ष से कम उम्र के उनके बच्चों ने शैक्षणिक सत्र 2020-21 में प्राथमिक विद्यालयों में एडमिशन लिया है और प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है। इस प्रकार, वे शैक्षणिक सत्र 2023-24 में पहली कक्षा में एडमिशन के हकदार हैं।
हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम, 2012 (आरटीई नियम) के नियम 8 के तहत बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) के साथ प्री-स्कूल में ऐसे बच्चे का एडमिशन से जुड़ा है, जिसने शैक्षणिक वर्ष के 1 जून को 3 वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो।
कोर्ट ने यह कहा,
"प्री-स्कूल में तीन साल की 'प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा' बच्चे को औपचारिक स्कूल में पहली कक्षा में एडमिशन लेने के लिए तैयार करती है... 6 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं करने वाले बच्चों के माता-पिता याचिकाकर्ता द्वारा अपने बच्चों के लिए वर्ष 2023 के 1 जून को किसी भी तरह की रियायत की मांग नहीं की जा सकती, क्योंकि वे आरटीई नियम, 2012 के आदेश के उल्लंघन के दोषी हैं, जो आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुरूप है। बच्चों को प्री-स्कूल में जाने के लिए मजबूर करना 3 वर्ष की आयु उन माता-पिता की ओर से गैरकानूनी कार्य है, जो हमारे समक्ष याचिकाकर्ता हैं। तर्क यह है कि बच्चे स्कूल के लिए तैयार हैं, क्योंकि उन्होंने प्रीस्कूल में 3 साल की प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है। उन्हें शैक्षणिक सत्र 2020-21 में एडमिशन दिया गया है। यह हमें बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करता है।
पीठ ने कहा,
“जहां तक कट-ऑफ तारीख का सवाल है, पहली कक्षा में एडमिशन पाने के लिए छठे वर्ष की आयु पूरी करने के लिए शैक्षणिक वर्ष की पहली जून तय करने वाले नियम को कोई चुनौती नहीं है। एकमात्र तर्क उन बच्चों को उत्तोलन/उदारता प्रदान करना है, जिन्हें शैक्षणिक सत्र 2020-21 में प्री-स्कूलों में एडमिशन दिया गया है और स्कूल के लिए तैयार होने के लिए 3 साल की प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है।”
पहली कक्षा में एडमिशन के संबंध में 31 जनवरी, 2020 और 4 अगस्त, 2020 दोनों अधिसूचनाओं के खिलाफ दी गई चुनौती, विशेष रूप से 1 जून की कटऑफ तारीख, अन्याय, अनौचित्य, अवैधता और असंवैधानिकता के दावों पर आधारित है। माता-पिता द्वारा रिट याचिकाकर्ताओं में अदालत से दोनों अधिसूचनाओं को रद्द करने और संबंधित स्कूलों को कटऑफ तिथि से छूट देकर 2023-24 शैक्षणिक सत्र के लिए उनके बच्चों को पहली कक्षा में प्रवेश देने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
याचिकाकर्ताओं का मुख्य यह तर्क था कि जो बच्चे 2020-21 शैक्षणिक सत्र के दौरान पहले से ही प्री-स्कूल में नामांकित थे और तीन साल की प्री-स्कूलिंग पूरी कर चुके हैं, उन्हें वर्तमान शैक्षणिक सत्र के लिए छूट दी जानी चाहिए।
उन्होंने इस तर्क को इस दावे पर आधारित किया कि शैक्षणिक वर्ष के 1 जून को 6+ वर्ष की आयु निर्धारित करने की नीति केवल 31 जनवरी, 2020 को लागू हुई, जिसने कई माता-पिता को आश्चर्यचकित कर दिया।
वकीलों द्वारा जोरदार तर्क दिया गया कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र में ऐसे बच्चों को पहली कक्षा में एडमिशन से वंचित करना, जो अन्यथा पहली कक्षा में औपचारिक स्कूल में एडमिशन के योग्य हैं। अगर ऐसा नहीं किया गया तो संविधान के अनुच्छेद 21 ए द्वारा मान्यता प्राप्त उनके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसे आरटीई एक्ट, 2009 के माध्यम से कार्यान्वित और लागू किया गया।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद अदालत ने कहा कि पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने स्वीकार किया कि वे पहली कक्षा में एडमिशन के लिए बच्चे की उम्र छह वर्ष होने की आवश्यकता को चुनौती नहीं दे सकते।
कोर्ट ने आगे कहा कि चुनौती वर्तमान शैक्षणिक वर्ष, 2023-24 के लिए 1 जून की कट-ऑफ तारीख पर केंद्रित है। इस आधार पर कि शिक्षा का अधिकार के तहत पहली कक्षा में एडमिशन से इनकार के कारण वर्तमान शैक्षणिक सत्र में राज्य में लगभग 9 लाख बच्चे (याचिकाकर्ताओं के बच्चों सहित) अपनी शिक्षा से वंचित हो जाएंगे।
अदालत ने कहा कि आरटीई एक्ट, 2009 की धारा 2 (सी) के अनुसार, 6 साल का बच्चा प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए पड़ोस के स्कूल में एडमिशन के पात्र है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि यह अधिकार बच्चे के छह साल का होने के बाद शुरू होता है और एडमिशन की समय सीमा बढ़ाने का कोई भी प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि छह वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी बच्चे को एडमिशन से वंचित नहीं किया जाए।
न्यायालय ने समझाया,
“आरटीई एक्ट, 2009 की धारा 2 (सी), 3, 4, 14 और 15 को एक साथ पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि 6 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे को औपचारिक स्कूल और राज्य में एडमिशन से वंचित नहीं किया जा सकता। सभी आवश्यक उपाय करना अनिवार्य है, जिससे आरटीई एक्ट, 2009 के तहत 'बच्चे' की परिभाषा के अंतर्गत आने वाले बच्चे अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिना किसी शर्त के पूरी कर सके।
कोर्ट ने कहा आगे बताया गया,
"जहां तक 6 साल से कम की शिक्षा की उम्र का संबंध है, इसे प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 द्वारा 'प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा' की उम्र के रूप में मान्यता दी गई है।"
न्यायालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 पर प्रकाश डाला। इससे पता चला कि बच्चे के मस्तिष्क का 85% से अधिक विकास 6 वर्ष की आयु से पहले होता है, जो स्वस्थ मस्तिष्क के विकास के लिए इन प्रारंभिक वर्षों के दौरान उचित देखभाल और उत्तेजना की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करता है।
न्यायालय ने लाखों छोटे बच्चों, विशेषकर वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा की कमी की ओर भी इशारा किया। इसने सभी छोटे बच्चों को पहुंच प्रदान करने के लिए प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि वे जीवन भर शिक्षा प्रणाली में आगे बढ़ सकें।
न्यायालय ने यह भी बताया कि यह निर्णय लिया गया कि गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन के विकास, देखभाल और शिक्षा का सार्वभौमिक प्रावधान जल्द से जल्द और 2030 से पहले हासिल किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्रेड 1 में प्रवेश करने वाले सभी छात्र स्कूल के लिए तैयार हैं।
कोर्ट ने कहा,
''हमारे सामने जो बच्चे हैं, उन्हें उनके माता-पिता ने 3 साल की उम्र पूरी होने से पहले प्री-स्कूल में दाखिला दिया है। आरटीई नियम, 2012 में प्री-स्कूल में एडमिशन के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है। गुजरात राज्य में दिनांक 18.2.2012 से लागू किया गया। जैसा कि ऊपर बताया गया है, नियम, 2012 के नियम 8 को चुनौती को इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा विशेष सिविल आवेदन नंबर 9879/2013 में पहले ही खारिज कर दिया गया है।''
याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा गया,
“उपरोक्त चर्चा के लिए हमें दिनांक 31.1.2020 और 4.8.2020 की अधिसूचनाओं को चुनौती में कोई योग्यता नहीं मिली। इस समूह में सभी रिट याचिकाएं योग्यता से रहित पाई गईं और इसलिए खारिज कर दी गईं।”
source http://www.primarykamaster.in/2023/09/blog-post_88.html
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